विशुद्धि चक्र (हं)
कंठ के पीछे मेरुदण्ड में विशुद्धि चक्र स्थित है। विशुद्धिचक्र विषाक्त तत्वों को शरीर में फैलाने से रोकता है। इसका प्रभाव फेफड़ों पर पड़ता है। नीले धूम्र वर्ण का षोडश दल कमल विशुद्धि, डमरू, यंत्र शूलिका, ग्रंथियों पर पड़ता है तथा इसके केन्द्र में पूर्ण चंद्र की तरह सफेद बिन्दु होता है। स्वर योगी इस पर त्राटक करके विशुद्धि की अपार क्षमता जाग्रत करते हैं तथा इस क्रिया से मुक्ति का द्वार खुलता है।
विशुद्धि चक्र अगर सुप्त हो: फेफड़े (Lungs), श्वासनतन्त्र (Respiratory system), अवटुग्रंथि (Thyroid gland), मुख (disorders of oral cavity), नेत्र (Eye), कर्ण (Ear), नासा (Nasal) तथा स्वरयंत्र (Vocal Cord) से सम्बंधित रोग हो सकते हैं।


- चक्र का निवास : कण्ठ प्रदेश
- चक्र का दल : 16
- चक्र का रंग : धूम्र, धुएँ जैसा धुँधला
- चक्र का तत्त्व : आकाश
- चक्र का बीजाक्षर : हं
- चक्र कमल दलों के अक्षर : अं, आं, इं, ईं, उं, ऊं, ऋं, ॠं, लं, लूं, एं, ऐं, ओं, औं, अं, अः
- चक्र का यंत्र : गोलाकार
- चक्र का गुण : शब्द
- चक्र के ध्यान का फल : ऐसे मनुष्य श्रेष्ठ ज्ञानी होते हैं। शांत चित्त होते हैं। इस चक्र का ध्यान करने से मनुष्य निरोगी, दीर्घायु, तेजस्वी एवं त्रिकालदर्शी होता है।